गायत्री मन्त्र क्या है-? क्या गायत्री मंत्र से रोग ठीक हो जाते है?
गायत्री मंत्र एक महा मंत्र है। इसमे अपार शक्ति निहित है। हम आज यह जानने की कोशिश करेनगे कि आखिर गायत्री मंत्र है क्या, और क्या इस से रोग ठीक हो जाते है?
‘ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्’ इसका अर्थ है कि उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशनाशक, देवस्वरूप परमात्मा का हम ध्यान करें. वो परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें
गायत्री मन्त्र में मूलतः 24 अक्षर होते हैं। मस्तिष्क जिस प्रकार हमारे शरीर और मन का नियन्त्रण केन्द्र है उसी प्रकार इसके मूल से 24 ज्ञान तन्तु निकलते हैं जो सारे शरीर में फैलते चले जाते हैं। जो शरीर की सभी क्रियाओं का संचालन करते हैं।
इन ज्ञान तंतुओ का गायत्री के 24 अक्षरों से सूक्ष्म सम्बन्ध रहता है।
जब गायवी मन्त्र का उच्चारण किया जाता है तब गायत्री को उसकी सूक्ष्म झन्कार 24 स्थानों से सुनाई देती है। उस झन्कार से वह ज्ञान तन्तु सशक्त होते हैं और निरन्तर क्रियाशील रहते हैं जिससे साधक हर क्षेत्र में दक्षता प्राप्त करता हुआ प्रगति पर पर अग्रसर होता रहता है।
विद्वान एवं योगाचार्य के अनुसार हमारे शरीर में ऐसे यौगिक केन्द्र ग्रन्वियां-चक्र आदि होते हैं-जो साधारणतः सुप्तावस्था में रहते हैं ।
लेकिन उनको जाग्रत करने से साधक महान शक्तिशाली बन जाता है ।
इसके साथ-साथ गायत्री मन्त्र के अक्षरों का गठन इस चमत्कारी ढंग से हुआ है कि एक के बाद एक अक्षर क्रमशः उन सूक्ष्म ग्रन्थियो पर आघात करता है। उन्हें जगाता है। यह ग्रंथिया ही शक्ति का स्रोत मानी जाती है। इन्हीं के जागरण से योगी अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करता है।
गायत्री भी एक ऐसा योग है जो साधक को एक शक्ति केन्द्र के रूप में परिणित (बदल) कर देता है। और इन शक्ति केन्द्र को जाग्रत करके साधक धन्य हो जाता है।
इस प्रकार से गायत्री साधक एक शक्ति पुंज बन जाता है। गायत्री के कौन से अक्षर से कौन सी शक्ति प्राप्त होती है, इसका विवरण निम्न प्रकार से है-
पहले अक्षर से सफलता,
दूसरे से पुरुषार्थ,
तीसरे से पालन,
चोथे से कल्याण,
पांचवें से योग,
छठे से प्रेम,
सातवें से लक्ष्मी-
आठवें से तेजस्थिता,
नवें से सुरक्षा,
दसवें से बुद्धि,
ग्यारवे से दमन,
बारहवें से निष्ठा,
तेरहवें से धारणा,
चौदहवें से प्राण,
पन्द्रहवें से समय,
सोलहवें से तप,
सत्रहवें से दूरदर्शिता,
अठारह से जागरण,
उन्नीसवे से सृष्टि-
बीसवे से सरलता,
इइक्कीसवे से साहस,
बाइसवे से शक्ति,
तेइसवे से विवेक,
चौबीसवे से सेवा भाव नाम की शक्तियों का उद्भव होता है।
इन गुणो को पाकर वह क्षुद्रता से महानता और बहुत से देवत्व की भूमिका में कदम रखने का अधिकारी हो जाता है और अपने जीवन लक्ष्य को पूर्ण कर पाता है।
इसके साथ-साथ गायत्री की शक्तियों के जागरण में स्वर विज्ञान का रहस्य छिपा हुआ होता है । स्वर मे शक्ति होती है।
अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। उसके विधिवत् उच्चारण से मकान तक गिराये जा सकते हैं।
दूसरे के मन को मोहित किया जाता है। इसके साथ-साथ इसका प्रभाव पशु-पक्षी और कीट-पतंगों तक पर देखा गया है।
मन्त्र में एक विशेष विधि से मन्त्र का गठन किया होता है, जो कि उच्चारण काल में विशेष ग्रन्थियों को गुदगुदाते हैं । उनको जाग्रत करते हैं।
उन्हें हम वैज्ञानिक भाषा में यह कह सकते हैं कि जब गायत्री मन्त्र का जाप, किया जाता है तब उसमें विद्य- मान अक्षरों के उच्चारण से कम्पन्न पैदा होता है और विश्वव्यापी ईश्वर में फैलकर कुछ ही क्षणों में अपनी विश्व परिक्रमा करके अपने उद्गम स्थान पर लौट जाते हैं ।
विश्व यात्रा के दौरान उनका अपने अनुकूल कम्पन से मिलन होता है।
अनुकूलता ही मिलन और संगठन का आधार है। अपने अनुकूल कम्पनों को वह अपनी व्यवस्था लिए आते है जिससे शक्ति के विकास के साथ-साथ सहायता करते है ।
सुप्त नाड़ी तंतुओ से स्फुरण उत्पन्न होता है और इससे वो क्रमबद्ध यौगिक संगीत का प्रवाह ईश्वर तत्व में चलने लगता है, वही मन्त्र शक्ति का कारण बनता है।
पुराण शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है। लोक में भी योगियों द्वारा विविध प्रकार के चमत्कार देखने को मिलते हैं। सिद्धिया कोई देवी वरदान नहीं वरन मन्त्र उच्चारण से सूक्ष्म शरीर में जो वैज्ञानिक प्रतिक्रियाओ का प्रवाह चलने लगता है, उसी का शुभ परिणाम है। गायत्री मन्त्र के सम्बन्ध में भी यही तत्थ्य लागू होते हैं। इस प्रकार से गायत्री मंत्र अनुष्ठान एक वैज्ञानिक साधना है जिससे सुनिश्चित परिणाम उपस्थित होते हैं ।
गायत्री को वेद माता-जगत माता कहते हैं ।
इसकी सिद्धिदायक शक्तियों के कारण इसे गुरु मन्त्र, महामन्त्र महानतम जप, तप और साधना को सम्मानित उपाधियों से विभूषित किया जाता है।
यह सनातन अनादि काल का यन्त्र है।
पुराणों में कथा आती है कि सृष्टि का निर्माण करने वाले ब्रह्मा को आकाशवाणी से गायत्री मन्त्र प्राप्त हुआ हुआ था। साथ ही यह भी आदेश मिला कि इसी साधना से सृष्टि निर्माण की शक्ति प्राप्त होती है। ब्रह्मा ने दीर्घ- काल तक गायत्री की तपश्चर्या की, तभी वह सृष्टि रचना करने में समर्थ हो सके।
विश्वामित्र गायत्री के ऋषि है। उन्होंने गायत्री मन्त्र की सर्वाधिक तपश्चर्या की थी ।
कहने का अर्थ यह है कि विश्व में महानतम और कठिनतम कार्यो की क्षमता गायत्री महाशक्ति मे है।
यदि विश्वामित्र ने घोर तप करके गायत्री की असाधारण शक्तियों को विकसित कर दिया तो आज भी कोई साधक अपेक्षित तप की अग्नि से जाग्रत करके जीवन निर्माण के यत्न कार्य मे सफल हो सकता है ।
गायत्री एक शक्ति है ।
जो इसको जगाने की विधि जानता है वह अवश्य ही सिध्धियों को प्राप्त होता है। इसमे कोई संदेह नहीं है।
गायत्री मंत्र की महिमा अकथनीय है । संसार की ऐसी कोई समस्या नही है जिसका समाधान यह मंत्र नही कर सकता हो ।
यदि पूर्ण विधान के अनुसार इसका जप किया जाय तो किसी भी कामना की पूर्ति की जा सकती है।
गायत्री मन्त्र की महिमा अकल्पनीय है। संसार की कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान यह मन्त्र ना कर सकता हो ।
यदि पूर्ण विधान के अनुसार इसका जप किया जाए हो किग्री भी कामना की पूति की जा सकती है।
गायत्री मन्त्र इस प्रकार है- “औ३म् भूर्भुवः स्व:तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री-मन्त्र में चौबीस शक्तियां गुंथी हुई हैं। गायत्री मन्त्र की उपासना करने से उन शक्तियों का लाभ साधक को मिलता है। चौबीस देवताओं की चौबीस शक्तियां हैं। मनुष्य को जिस शक्ति की कामना हो या इन शक्तियों में से किसी शक्ति की अपने में कमी का अनुभव होता हो तो उसे उस शक्ति वाले देवता की उपासना करनी चाहिए। उस देवता का ध्यान करते हुए देव गायत्री का जप करना चाहिए। इनके जप से उस देवता के साथ साधक का विशेष रूप से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और उस देव से सम्बन्ध रखने वाली चैतन्य शक्तियां, सिद्धियां साधक को प्राप्त हो जाती हैं। उस शक्ति के देवता की गायत्री का जप भी मूल गायत्री जप के साथ करने से लाभ होता है।
जैसे दूध में सभी पोषक तत्त्व होते हैं और दूध पीने वाले को सभी पोषक तत्त्वों का लाभ मिलता है। परन्तु यदि किसी को किसी विशेष तत्त्व की आवश्यकता होती है तो वह दूध के उसी विशेष तत्त्व का ही सेवन करता है। किसी को यदि चिकनाई की आवश्यकता है तो वह दूध के चिकनाई वाले भाग घी का सेवन करता है। किसी को छाछ की आवश्कता है तो वह दूध के छाछ वाले अंश को ग्रहण करता है। रोगियों को दूध फाड़कर उसका पानी देते हैं। उसी प्रकार विशेष शक्तियों की आवश्यकता होने पर मनुष्य को उसी शक्ति से सम्बन्धित देव की आराधना करनी चाहिए।
चौबीस देवताओं के गायत्री मन्त्र:
- गणेश गायत्री
प्रभाब: – कठिनाइयों के निवारण के लिए और दुर्गम कार्य सरलता ।
मन्त्र यह है – औ३म एक दृष्टाय विद्यहे वक्रतुण्डाय श्रीमहि तन्नो बुद्धि प्रचोदयात् ।
- विष्णु गायत्री : प्रभावः -परिवार को पालने में क्षमता की बढ़ोतरी
मन्त्र यह है –
ओ३म् नारायण विद्यहे बासुदेवायः धोमष्टि तन्नो विष्णु प्रचोदवात् ।
- शिव गायत्री
प्रभावः-उपद्रवों को समाप्ति – शांति-कल्यानं ।
मन्त्र यह है – ओ३म् पंच बकत्राम विद्यते महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्
- ब्रह्मा गायत्री
प्रभात्रः-उत्पादन क्षमता में वृद्धि ।
मन्त्र यह है – औम् चतुर्मुखाय विद्यहे हंसारूणाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ।
- राम गायत्री
प्रभाव:-मर्यादा सम्मान में वृद्धि सुरक्षा ।
मन्त्र यह है- ओ३म् दशरथये विद्यहे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ।
- कृष्ण गायत्री
प्रभावः कर्मक्षेत्र की सफलता -क्रियाशीलता में वृद्धि
मन्त्र यह है – ओ३म् देवकी नन्दनाय विद्यहे वासुदेवाय तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।
- इन्द्र गायत्रो
प्रभाव:- आंक्रमण की स्थिति में रक्षा।
मन्त्र यह है-औ३म् सहस्त्रनेत्राम विद्यहे वधहस्ताय धीमहि तन्नों इन्द्र, प्रचोदयात् ।
- हनुमान गायत्रो
प्रभावः- कर्म निष्ठा- कर्तव्यपरायण की पुष्टि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् अंजनी सुताय विद्यहे वायु पुत्राय धीमहि तन्लो मारुति प्रचोदयात् ।
- सूर्य गायत्री
प्रभावः – रोग मुक्ति ।
मन्त्र यह है- ओ३म् भास्कराय विद्यहे दिवाकरा धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात् ।
- चन्द्र गायत्री प्रभावः- मानसिक क्लेश-चिन्ता –अवसाद- निराशा से मुक्ति
मन्त्र यह है – औ३म् क्षीर पुत्राय विद्यहे अमृतवाम धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ।
11.यम गायत्री
प्रभावः – मृत्यु-भय से मुक्ति ।
मन्त्र यह है- ओ३म् सूर्य पुत्राय विद्यहे महाकालाय धीमहि तन्नो यम प्रचोदयात् ।
12.वरुण गायत्री
प्रभावः-स्नेह भावना (प्रणय-माधुर्य) की वृद्धि ।
मन्त्र पढ़ है- ओ३म् जलबिम्बाय बिग्रहे नील पुरुषाम धीमहि तन्नो वरुण प्रचोदयात् ।
13.नारायण गायत्री
प्रभावः – प्रशासनिक प्रभाव में वृद्धि अधिकार क्षमता ।
मन्त्र यह है- ओ३म् नारायण विद्यहे वासुदेवाय श्रीमहि तन्नो नारोयणः प्रचोदयात् ।
- नृसिंह गायत्री
प्रभावः -पराक्रम बृद्धि – पुरु बीच पुष्टि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् उग्र नृसिहाय विद्यहे वज्र न खाये श्रीमहि तन्नो नृसिह प्रचोदयात् ।
- कुर्श गायत्री
प्रभावः – विघ्नो पर विजय-शत्रु नाश-दुख दमन की क्षमता ।
मन्त्र यह है- ओ३म् विराजाये विद्यहे शिवप्रियाये धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।
16 लक्ष्मी गायत्री
प्रभावः- धन सम्पत्ति-ऐश्वर्य, यश्च पव-प्रतिष्ठा में वृद्धि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् महालक्ष्म्ये विद्यहे विष्णु प्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।
17.राधा गायत्री
प्रभाव – जीवन में प्रेम की पूर्णता ।
मन्त्र यह है- ओ३म् वृषभानुजाएँ विद्यहे कृष्ण प्रियाये धीमहि तन्नो प्रचोदयात् ।
- सीता गायत्री
प्रभावः-तप शक्ति में वृद्धि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् जनक नंदिन्यै विद्यहे भूमिजाय धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात् ।
19.सरस्वती गायत्री
प्रभावः – स्मरण शक्ति, मेषा-ज्ञान की वृद्धि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् सरस्वत्ये विद्यहे ब्रह्मपुत्रयं धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
- अग्नि गायत्री
प्रभावः-तन-मन-प्राण समस्त इन्द्रियों में तेजस्विता।
मन्त्र यह है- ओ३म् महाव्वलाय विद्यहे अग्नि देवाय धीमहि तन्नो अग्नि प्रचोदयात् ।
- पृथ्वी गायत्री
प्रभावः- दृढ़ता–धैर्य-सहिष्णुता की वृद्धि ।
मन्त्र यह है- ओ३म् पृथ्वी दैव्ये विद्यहे सहस्त्रभूत्ये धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात् ।
- तुलसी गायत्री
प्रभावः – परमार्थ भावना और सेवावृत्ति का विकास। मन्त्र यह है- ओ३म् श्री तुलस्ये विद्यये विष्णु प्रिराय धीमहि तन्नो वृन्दा प्रचोदयात ।
23. हंस गायत्री प्रभावः-विवेक शक्ति का उद्भव एवं बिकास । मन्त्र यह है- ‘ओ३म् परमसहाय विद्यहे महाहंसाय श्रीमहि तन्नो हंसा प्रचोदयात् ।
- हृयग्रीव गायत्री प्रभावः– भयनाश और साहस सम्वर्धन ।
मन्त्र यह है – ओ३म् वाणीश्वराय विद्यहे हृयग्रीवाम् धीमहि तन्नो प्रचोदयात्
जिस देवता की जो गायत्री है उसका दशांश जप गायत्री मन्त्र साधना के साथ करना चाहिए। देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि bigfinder.co.in किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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