शीतला सप्तमी का इतिहास और महत्व

शीतला सप्तमी का इतिहास और महत्व
शीतला सप्तमी का इतिहास और महत्व
शीतला सप्तमी का इतिहास और महत्व
शीतला सप्तमी का
इतिहास
और महत्व

शीतला सप्तमी का इतिहास और महत्व

हिंदू धर्म में बसौड़ा या शीतला सप्तमी का त्योहार महत्वपूर्ण है। यह त्योहार माता शीतला को समर्पित है, जो गर्मी और चेचक की देवी हैं।

इतिहास:
शीतला सप्तमी का इतिहास बहुत पुराना है। वेद और पुराण भी इस त्योहार को बताते हैं। स्कंद पुराण कहता है कि माता शीतला भगवान शिव की पत्नी पार्वती का अवतार थी।
शीतला माता की पौराणिक कहानी:

स्कंद पुराण में शीतला माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताती है कि वह ब्रह्माजी से जन्मी थी। शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति मानते हैं। पौराणिक कहानी कहती है कि देवी शीतला देवलोक से आई थी और दाल के दाने हाथ में लेकर भगवान शिव के पसीने से बना ज्वरासुर के साथ धरती पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थी। लेकिन देवी शीतला को राजा विराट ने राज्य में रहने से मना कर दिया।

राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला की त्वचा क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध से राजा की जनता की त्वचा लाल-लाल हो गई। लोगों की त्वचा गर्म होने लगी। तब राजा विराट ने अपनी गलतियों को माफ कर दिया। राजा ने माता शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी दी, जिससे उसका क्रोध शांत हो गया। तब से माता-पिता को ठंडे खाने की परंपरा चली आ रही है।

अनूठा है माता का रूप: 
स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला का रूप अनूठा है. देवी शीतला का वाहन गधा है. देवी शीतला अपने हाथ के कलश में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं. चौसठ रोगों के देवता, घेंटूकर्ण त्वचा रोग के देवता, हैज़े की देवी और ज्वारासुर ज्वर का दैत्य इनके साथी होते हैं. स्कंदपुराण के अनुसार, देवी शीतला के पूजा स्तोत्र शीतलाष्टक की रचना स्वयं भगवान शिव ने की थी.

shitla mata
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शीतला सप्तमी का महत्व: स्वास्थ्य और समृद्धि का त्योहार:

शीतला सप्तमी, जो चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, स्वास्थ्य और समृद्धि का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह उत्सव देवी शीतला, जिन्हें माता शीतला, शीतला या शीतला माता के नाम से भी जाना जाता है, की पूजा के लिए समर्पित है।
माता शीतला को गर्मी की बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है, खासकर चेचक। माना जाता है कि उनकी पूजा करने से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है और बीमारियों से बचाव मिलता है।
शीतला सप्तमी पर लोग व्रत रखते हैं, देवी शीतला को पूजते हैं और भोग लगाते हैं। ठंडे व्यंजन जैसे दही, खीरा और तरबूज आमतौर पर भोग में शामिल होते हैं।

Thandai
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देवी शीतला की पूजा करने वाले लोग घर में एक मंडप बनाते हैं जिस पर उनकी मूर्ति या चित्र रखते हैं। वे देवी को आरती करते हैं और उसे फूल, फल और मिठाई चढ़ाते हैं।इस दिन कुछ लोग बूंदी के लड्डू बनाकर देवी शीतला को भोग चढ़ाते हैं।
शीतला सप्तमी का त्योहार केवल स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए नहीं मनाया जाता, बल्कि भाईचारे और सहकारिता को बढ़ाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर खाते हैं।

bundi ke laddu
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स्वास्थ्य, समृद्धि और सामाजिक सद्भाव शीतला सप्तमी का त्योहार हैं। यह त्योहार हमें दूसरों की मदद करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना सिखाता है।

साथ ही साथ यह त्योहार हमे यह वैज्ञानिक शिक्षा भी देता है कि अब सर्दी का मोसम समाप्त हो रहा है और गर्मी का मोसम शुरू हो रहा है अतः हमे अब ठंडा या बासी भोजन नहीं खाना चाहिए क्योकि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानी कारक हो सकता है। जो भी बास खाना आज खाना है खा लो कल से ताज़ा खाना ही खाना है। 

शीतला माता सबकी रक्षा करे – जय शीतला माता 

 

 

 

 

 

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