यदि आप निर्जला एकादशी व्रत करते हैं तो पर्याप्त है | फिर आप दूसरे एकादशी को व्रत करें या ना करें फर्क नहीं पड़ता | हालाँकि इसका मतलब ये नहीं है की हमको निर्जला एकादशी के अलावा किसी दूसरी एकादशी का व्रत नहीं करना चाहिये| निर्जल मन और निर्जल तन का यह व्रत जिंदगी में नियम के कई पाठ भी पढ़ाता है।
निर्जला एकादशी व्रत आगामी 31 मई 2023 के दिन किया जावेगा
कोरोना काल में स्वयं को मजबूत बनाने के लिए व्रत के विधि-विधानों का पालन करना आवश्यक है। पहला सुख है निरोगी काया और काया को निरोगी रखने के लिए जरूरी है ज्येष्ठ माह में निर्जला एकादशी का व्रत, जो न केवल मनोकामनाओं की पूर्ति करता है, बल्कि स्वास्थ्य और सुख भी प्रदान करता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक मास की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी व्रत रखा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस प्रकार विवेक के समान कोई बंधु नहीं है, उसी प्रकार एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है।
एकादशी का व्रत स्वास्थ्य आदि की दृष्टि से श्रेष्ठ माना गया है, जिसमें निर्जला एकादशी सर्वश्रेष्ठ है। धर्मशास्त्र अनुसार, वर्ष भर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखने से प्राप्त हो जाता है।
जैसा इसका नाम निर्जला है, वैसा ही इसका नियम भी है। व्रत के दिन न तो अन्न खाना चाहिए और न ही पानी पीना चाहिए। दूसरे दिन द्वादशी को दान आदि करके व्रत पूर्ण होता है।
मान्यता है, निर्जला एकादशी का व्रत करने से झूठ बोलने, बुराई करने, ब्रह्म हत्या और गुरुद्रोही आदि के पाप भी दूर हो जाते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाली महिलाओं को अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो व्रत से पाचन तंत्र मजबूत होता है| निर्जला एकादशी व्रत के नियम, प्रभाव और आचरण से शरीर डिटोक्सीफाई हो जाता है| यानी शरीर में एकत्र हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं|
क्या है निर्जला एकादशी व्रत का विधि-विधान
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद व्रत-पूजन का संकल्प कर भगवान विष्णु की पूजा आराधना नियमपूर्वक संपन्न की जाती है।
पूजन के बाद कलश के जल से पीपल के वृक्ष को अर्घ्य देने की परंपरा है व्रत का संकल्प करने वाले ती प्रातः काल सूर्योदय से आरंभ कर दूसरे दिन सूर्योदय तक व्रत के नियमों का पालन करते हैं और जल तथा अन्न का सेवन नहीं करते हैं।
व्रत के दूसरे दिन यानी द्वादशी को प्रातः काल निर्मल जल से स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या पीपल के वृक्ष के नीचे जल, फूल, धूप और दीपक जलाकर प्रार्थना करें, क्षमायाचना करें।
उसके बाद सामर्थ्य के अनुसार नियमों का पालन करते हुए ब्राह्मणों को भोजन कराएं और जलयुक्त कलश का दान करें। इस दिन जल ग्रहण न करने के विधान के कारण ही इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।
महर्षि वेदव्यास के सामने भीम ने प्रतिज्ञा कर इस एकमात्र एकादशी का व्रत पूरा किया, तभी से इसे ‘भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
ज्येष्ठ माह के भीषण गर्मी वाले दिन जब प्यास लगना स्वाभाविक है, ऐसे समय में नियमपूर्वक अन्न-जल का त्याग शरीर को रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।
व्रत का नियम पूरी तरह से पालन करने से व्यक्ति रोगमुक्त एवं दीर्घायु होता है, इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि अगर वर्ष में पड़ने वाली बाकी अन्य एकादशी का व्रत न भी रख पाएं तो निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रखें|
ताकि पुण्य लाभ के साथ-साथ स्वास्थ्य और सुख भी मिल सके।
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